पी वी सिंधु का रजत पदक - एक प्रेरणा।
आज का दिन यह सोचने का नहीं है कि हमने " गोल्ड" खोया है बल्कि यह सोचने का है कि आज हमारे देश ने " रजत " पाया है। भारत की इस पुत्री ने 120 साल के इतिहास में पहली बार भारत को बैडमिंटन में एकल रजत दिलवाया हैं।
5 जुलाई 1995 को हैदराबाद बाद में जन्म लेने वाली इस 5 फ़ीट 10 इंच लम्बी दाहिने हाथ की खिलाड़ी ने इतिहास रच दिया हैं। " पद्मश्री " पी वी सिंधु की वर्तमान में 9 वीं वर्ल्ड रैंक है। इसकी आयु के मद्देनज़र अभी बहुत सी उपलब्धियां आनी बाकी हैं।
आज हमें हमारे देश में उपलब्ध असीम संभावनाओं पर विचार कर दीर्घकालिक योजना का निर्माण आरम्भ करना चाहिए। चीन ने पिछले 25 वर्षो में कठोर मेहनत की एवम आज वो विश्व की खेल महाशक्ति के रूप में उभरा हैं।
हमें स्कुल स्तर से ही खिलाड़ी चुनने होंगे और प्राथमिक स्तर से यह कार्य आरम्भ करना होगा। इस हेतु प्रत्येक प्राथमिक स्कुल में एक शारारिक शिक्षक अनिवार्य रूप से नियुक्त करना अपेक्षित हैं।
श्रेष्ठ बुद्धि स्वस्थ तन में ही निवास करती है एवम इसके लिए खेल, योग, कसरत, व्यायाम इत्यादि जरुरी है। हमें शारारिक शिक्षको को नवीन भूमिका में देखना होगा।
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