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पंचमकार

मित्रों ! आज का मेरा विषय सर्वाधिक चर्चित , साधकों का प्रिय , साथ में  सबसे अधिक निंदा प्राप्त करने वाला विषय – पंचमकार है ! मैं आज तक यह नहीं समझ पाया पंचमकार इतना चर्चित क्यों है ? जबकि तंत्र मार्ग में पंचभूतों का भी वर्णनन आता है ! पंचभूतों के विषय में ना तो कोई चर्चा करना चाहता है और ना ही जानना चाहता है ! पंचमकार का लोकप्रिय होने का कारण कहीं  वामाचार तो नहीं है ? जब आप पंचमकार के द्वारा साधना करना चाहते हैं , तो आपको मदिरा – मांस – मत्स्य – मुद्रा –मैथुन की स्वतंत्रता मिल जाती है ! संभवत: यही इसकी लोकप्रियता का कारण है ! आईये तनिक स्त्री – पुरुष के सम्बन्ध को तंत्र की द्रष्टि से  समझने का प्रयत्न करते हैं ! पुरुष परमेश्वर है तो प्रकृति परमेश्वरी है ! शिव कामेश्वर है तो शक्ति कामेश्वरी है ! सभी पुरुष परमेश्वर और सभी स्त्रियाँ परमेश्वरी हैं और हैं कामेश्वर और कामेश्वरी इन दोनों का मिथुनात्म्क सम्बन्ध ही मूल है ! वही मूल आकर्षण है अथवा काम ( SEX ) है ! नि:संदेह कौल मत की अध्यात्मिक भावना और दार्शनिक पुष्टि अत्यन्त गहरी और सूक्ष्म है ! जैसे जप करने वाले साधक के दोनों ओंठों में एक शिव और दूसरा शक्ति है ! ओठों का जो हिलना है वही दोनों का मैथुन है ! सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि कौल मत ने ही सबसे पहले यह बतलाया कि पिण्ड ( HUMAN BODY ) ब्रह्माण्ड का संक्षिप्त संस्करण  है ! इसी कड़ी में कौल मत ने यह भी स्पष्ट किया कि मूलाधार चक्र में बाल से भी पतला सर्प की कुण्डली की तरह घूमा हुआ गोलाकार एक नाड़ीतन्तु  है उसी तन्तु में वह महाजीवनी  शक्ति सुप्त अवस्था में विद्यमान है ! तन्तु का रूप सर्प की कुण्डली के समान होने के कारण कौल मत ने उस परम शक्ति को नाम दिया – ‘’ कुण्डलिनी शक्ति ‘’! आपकी जानकारी के लिए बतलादूँ कुण्डलिनी जागरण के मुख्य चार चरण हैं ! सर्वप्रथम कुण्डलिनी का जागरण , दूसरे चरण में कुण्डलिनी शक्ति का उत्थान , तीसरे चरण में चक्रों का भेदन और अंतिम चरण में सहस्त्रार स्थित शिव के साथ महामिलन ! यह मत दोनों ही कौल  मत वालों का है ! पूर्व कौल समयचारी साधना मार्ग है और उत्तर कौल वामाचारी साधना मार्ग है ! उल्लेखनीय बात यह है दोनों ही मार्गों में शक्ति और उर्वरता की प्रतीक योनी की पूजा है ! कहा है – योनिपूजा बिना पूजा कृतमप्यकृतम भवेत् ! यहाँ समझने वाली बात यह है पूर्व कौल के अनुयायी प्रतीक रूप में  श्री यंत्र योनी की पूजा करते हैं , जबकि उत्तर कौल के अनुयायी प्रत्यक्ष योनी के उपासक होते हैं ! पूर्व कौल के उपासक योनी की प्रतीकात्मक पूजा करते हैं , प्रत्यक्ष नहीं ! अगर शुद्ध ह्रदय और पवित्रता से देखा जाए तो वामाचारी साधना मार्ग प्रवर्ती से निवृति की और अग्रसर होता है ! तंत्र मार्ग में केवल वामाचार ही नहीं है कौलाचार , कुलाचार , समयाचार भी हैं , लेकिन सर्वाधिक  लोकप्रियता वामाचार ने ही प्राप्त की है ! इसके पीछे कहीं  काम ( SEX ) का ही मुख्य आकर्षण तो नहीं है ?                                                                                      अनेक प्राचीन तांत्रिक ग्रंथों के अनुसार अनार्यों ने तंत्र से प्रभावित होकर पंचमकार की विशिष्ट पूजा – साधना का प्रचार किया था ! इसमें पांच ऐसे तत्वों की गणना है जिनका प्रथम अक्षर ‘’ म ‘’ है और इसलिए इन्हें मादी तत्व भी कहा जाता है ! कौलचार के मूल ग्रंथ कुलार्णवतंत्र में इन पाँचों को इस प्रकार गिनाया गया है – मदिरा- मांस – मत्स्य – मुद्रा – मैथुन ! श्री विद्या के उपासक समयाचार के मत को मानने वाले इन पंच तत्वों का प्रयोग ना कर केवल उनकी अनुकल्पना  कर लेते हैं ! मैं स्वयं इस बात से सहमत हूँ हमे इन वस्तुओं को प्रत्यक्ष प्रयोग ना कर इनकी कल्पना करके अपनी साधना पूर्ण करनी चाहिए ! पंच मकार को हम पांच महाभूतों के रूप में भी ले सकते हैं , जैसे – अग्नि –वायु – जल – प्रथ्वी – आकाश ! मैं निज रूप में पंचमकार को मन्त्र – माला – मूर्ती – मणि – मुद्रा के रूप में प्रयोग करता हूँ ! इसी बात को पुष्ट करते हुए तंत्र गुरु कहते हैं – जप कर्म मैथुन है ,अधर शिवा हैं , ओष्ठ शिव हैं , जप करते हुए दोनों ओष्ठों का मिलन ही बहुचर्चित  मैथुन है ! अगर हम पंच मकार को प्रतीकात्मक रूप में लेंगे तो संभव है अनजाने में होने वाले पापकर्म से बच जाएँ ! इसलिए हमे पंचमकार को कूटार्थ और रहस्यार्थ में ही समझना चाहिए ! व्यवहार्थ और प्रकटार्थ में नहीं ! वैसे भी हमे देश – काल और पारिस्थिती का ध्यान तो रखना ही होगा ! आप तनिक विचार करें तंत्र शास्त्रों में पग पग पर बार बार  गोपनीय और रहस्यमय शब्द क्यों लगाया गया है ? इसलिए स्वतंत्रता  पाकर साधक कहीं पतित या भ्रष्ट ना हो जाये ? संसार बंधन से मुक्ति पाने के लिए और साधना में निश्चित  सफलता प्राप्त करने के लिए हमे इन मकारों को ज्ञानरूप में ही लेना चाहिए , जो साधक सुख के लिए , आनंद के लिए दिखावटी साधना में या व्यभिचार में  इनका प्रयोग करता है ! यह मकार नि:संदेह उसके लिए घातक ही हैं !

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