आजकल नए बने एक्सप्रेस वे पर रोजाना गाड़ियों के टायर फटने के मामले सामने आ रहे हैं......
जिनमें रोजाना कई लोगों की जानें जा रही हैं.एक दिन बैठे बैठे मन में प्रश्न उठा कि आखिर देश की सबसे आधुनिक सड़कोँ पर ही सबसे ज्यादा हादसे क्यूँ हो रहे हैं?
और हादसों का तरीका भी केवल एक ही वो भी मात्र टायर फ़टना, ऐसा कौन सी कीलें बिछा दीं सड़क पर हाईवे बनाने वालों ने कि सबके टायर ही फ़टते है?
दिमाग ठहरा खुराफाती सो सोचा आज इसी बात का पता किया जाये. तो टीम जुट गई इसका पता लगाने में.
अब सुनिए हमने
प्रयोग के लिए एक मित्र को बुला लिया और हम scorpio SUV से निकल पड़े (ध्यान रहे असली मुद्दा टायर फटना है) सबसे पहले हमनें ठन्डे टायरों का प्रेशर चेक किया और उसको अन्तराष्टीय मानकों के अनुरूप ठीक किया जो कि 25 PSI है..
(सभी विकसित देशों की कारों में यही हवा का दबाव रखा जाता है जबकि हमारे देश में लोग इसके प्रति जागरूक ही नहीं हैं या फिर ईंधन बचाने के लिए जरुरत से ज्यादा हवा टायर में भरवा लेते हैं जो की 35 से 45 PSI आम बात है)
खैर अब आगे चलते हैं. इसके बाद फोर लेन पर हम चढ़ गए और गाड़ी दौड़ा दी..
गाडी की स्पीड 120 - 140 KM/Hरखी..
इस रफ़्तार पर गाडी को दो घंटे दोड़ाने के बाद हम उदयपुर के पास पहुँच गए थे।
रूककर हमने दोबारा टायर प्रेशर चेक किया तो यह चोंकाने वाला था,
अब टायर प्रेशर था 52 PSI
अब प्रश्न उठता है कि आखिर टायर प्रेशर इतना बढ़ा कैसे सो उसके लिए थर्मोमीटर को टायर पर लगाया तो टायर का तापमान था 92.5 डिग्री सेल्सियस,
.....सारा राज अब खुल चुका था, कि टायरों के सड़क पर घर्षण से तथा ब्रेकों की रगड़ से पैदा हुई गर्मी से टायर के अन्दर की हवा फ़ैल गई B2B टायर के अन्दर हवा का दबाव इतना अधिक बढ़ गया।
चूँकि हमारे टायरों में हवा पहले ही अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप थी सो वो फटने से बच गए।
लेकिन जिन टायरों में हवा का दबाव पहले से ही अधिक (35 -45 PSI) होता है
या जिन टायरों में कट लगे होते हैं उनके फटने की संभावना अत्यधिक होती है।
अत : फोर लेन पर जाने से पहले अपने टायरों का दबाव सही कर लें और सुरक्षित सफ़र का आनंद लें।
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