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बछवारस-वत्स द्वादशी लोककथा : Bachbaras katha

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बछवारस-वत्स द्वादशी
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द्वादशी बछवारस भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ मूंग, मोठ तथा बाजरा अंकुरित करके मध्यान्ह के समय बछड़े को खिलाती हैं।
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व्रती भी इस दिन उपरोक्त अन्न का ही सेवन करता है। इस दिन गाय का दूध-दही सेवन नहीं करना चाहिए।
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इस दिन भैंस के दूध, दही का प्रयोग लाभकर होता है।
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भाद्र का महीना आया। बछबारस आयी। इन्द्र की इन्द्राणियां पूजा करने के लिए धरती पर आई, तो उनको गाय दिखी।
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गाय की पूजा करने लगे। आगे से पूजा करे तो गाय सींग मारती और पीछे से करे तो लातों से मारती।
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इन्द्राणियां बोली हम तो तुम्हें पूज रहे है और तू हमें मारती है।
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गाय बोली-मुझे अकेली को क्यो पूजते हों, बछड़ा व गाय दोनों की पूजा करो।
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इन्द्र की इन्द्राणियों ने दर्भ का बच्चा बनाया। गाय के पास बैठाया अमृत के छींटे दिये। गाय के पास आते ही बछड़ा जीवित हो गया और गाय का दूध पीने लगा।
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इन्द्राणियों ने उनकी पूजा की। फिर गाय बछड़े को लेकर घर आयी। गाय के साथ बछड़ा देखकर मालकिन ने उसे घर में घुसने नहीं दिया।
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वो गाय को कहने लगी। मेरे तो बच्चा नहीं है, तू मेरे का बच्चा लाई है। मेरे बच्चा लायेगी तो तुझे अन्दर आने दूंगी।
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गाय बोली- अभी तो मुझे घर में ले लो अगली बछबारस को मैं तुझे बेटा दूंगी।
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अगली बछवारस (वत्स द्वादशी) आई। गाय वन में गई।
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इन्द्राणियां पूजा करने लगी। तो गाय पूजा नहीं करने दे रही थी, मार रही थी तो इन्द्राणियां बोली अब क्या चाहिए ?
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गाये बोली, पिछले साल मेरे बच्चा दिया अब मेरी मालकिन को भी बच्चा दो नहीं तो वो मुझे घर नहीं आने देगी। तभी मैं तुमको पूजा करने दूंगी।
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तो इन्द्र की इन्द्राणियों ने दर्भ का बच्चा बनाया दर्भ का पालणा बनाया। पालने को गाय के सींगों से बांधा उसमें बच्चे को लिटाया और संजीवनी का छींटा दिया।
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फिर इन्द्राणियों ने गाय की पूजा करी।
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गाय बच्चे को लेके घर गई तो सारी औरतें कहने लगी, सेठानी तेरे लिये तेरी गाय बच्चा लाई है। .
सेठानी ने गाय को गाजे-बाजे से सामने लिया। गाय माता ने सेठानी को बच्चा दिया। वैसे सबको देना, भरापूरा रखना खोटी की खरी, अधूरी की पूरी।
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वत्स द्वादशी की कथा
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भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को पहली श्री कृष्ण को माता यशोदा ने अच्छी प्रकार से सजाकर और पूजा पाठ आदि करा के गौएं और बछड़े चराने भेजा था।
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पूजा-पाठ के बाद कृष्ण ने सभी बछ़डे खोल दिये।
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चिंता दिखाते हुए यशोदा ने बलराम से कहा, बछड़ों को चराने दूर मत निकल जाना। श्रीकृष्ण को अकेले मत छोड़ना।
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श्रीकृष्ण द्वारा गोवत्सचारण की इस पुण्य तिथि को पर्व के रुप में मनाया जाता है।
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भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली द्वादशी को गोवत्स द्वादशी के नाम से जाना जाता हैं। इसे बछवारस भी कहते हैं।
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बछबारस की लोक गाथा
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एक बार राजा ने एक तालाब बनवाया। चारो ओर से उसकी दीवार पक्की करा दी गई परन्तु तालाब में पानी नही भरा।
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तब राजा ने ज्योतिषी से इसका कारण पुछा तो उसने बताया कि अगर आप अपने नाती की बलि देवे और यज्ञ करे तो तालाब पानी से भर जायेगा
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यज्ञ मे बच्चे की बलि दी गई। और तालाब वर्षा होने पर पानी भर गया। राजा ने तालाब का पूजन किया।
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पीछे उनकी नौकरानी ने गाय के बछडे को काटकर साग बना दिया। लौटने पर जब राजा रानी ने नौकरानी से पूछा,”बछडा कहा गया ?“
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नौकरानी ने कहा उसकी मैने सब्जी बना दी है राजा कहने लगा-पापिन तुने यह क्या कर दिया ।
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राजा ने मांस की हांडी को जमीन में गाड दिया। शाम को जब गाय वापस आयी तो उस जगह को अपने सींगो से खोदने लगी। जहाँ पर बछडे के मांस की हांडी गाढी गई थी।
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जब सीग हांडी में लगा तो गाय ने उसे बाहर निकाला उस हांडी में से गाय का बछडा एवं राजा का नाती जीवित निकले
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उस दिन से इस दिन का नाम बछवारस पड़ गया और गायों तथा उनके बछड़ों की पूजा होने लगी.।
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29 अगस्त, सोमवार को यह त्यौहार मनाया जाएगा। इस रोज पुत्रवती महिलाएं गाय व बछड़ों की पूजा करती हैं।
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कैसे करें पूजन
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प्राचीनकाल में तो अधिकतर लोगों के घर में गौ पालन किया जाता था लेकिन आज के परिवेश में ऐसा संभव नहीं है इसलिए अपने घर में गाय व बछड़ा न होने पर जहां भी गाय व बछड़ा मिलें उनका पूजन करें। .
यदि कहीं भी न मिलें तो गीली मिट्टी से गाय, बछड़ा, बाघ और बाघिन को मूर्त रूप देकर पाटे पर स्थापित करके पूजन करें।
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उनकी मूर्तों पर दही, भीगा हुआ बाजरा, आटा, घी आदि अर्पित करें। फिर रोली से तिलक करके उसके ऊपर चावल लगाएं अंत में दूध चढ़ाएं।
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मोठ और बाजरे पर अपनी सामर्थ्य अनुसार धन रखकर अपनी सास को भेंट दें।
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गोवत्स द्वादशी के दिन बासा भोजन खाया जाता है विशेषकर बाजरे की ठंडी रोटी।
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गाय के दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त गेहूं और चावल भी नहीं खाएं।
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अविवाहित बेटे की कमीज पर स्वस्तिक बनाएं। उसे वो कमीज पहनाकर कुएं पर ले जाएं फिर दोनों मिलकर कुएं का पूजन करें।
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यह पूजन आपके बेटे के लिए सुरक्षा कवच का काम करेगा। बुरी बलाओं, भूत- प्रेत और नजर दोष से सदा उसकी रक्षा करेगा।
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  (((((( जय जय श्री राधे )))))
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जय दुःख भंजन

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