रक्षाबंधन का महत्व
आप सभी रक्षाबंधन का त्यौहार उत्साह से मनाते होंगे । वैसे तो इस पर्व का भावनिक महत्व है । भाई के उत्कर्ष हेतु बहन उसे रक्षा बांधती है एवं भाई बहन का संरक्षण करता है; परंतु इसके साथ ही साथ इसका आध्यात्मिक लाभ भी है ।
रक्षाबंधन के दिन पाताल के बलिराजा के हाथ पर रक्षा बांधकर, लक्ष्मी ने उन्हें भाई बनाया एवं नारायण को मुक्त करवाया । रक्षाबंधन के दिन वातावरण में यमतंरगों की मात्रा अधिक होती है । यमतरंगे पुरुष साकारत्व होती हैं । अर्थात वे पुरुषों की देह में अधिक मात्रा में गतिमान होती हैं ।
पुरुषों की देह में यमतरंगों का प्रवाह प्रारंभ होने पर उनकी सूर्यनाडी जागृत होती है और इस जागृत सूर्यनाडी के आधार से देह में स्थित रज-तम की प्रबलता बढकर यमतरंगें पूर्ण शरीर में प्रवेश करती हैं । जीव की देह में यमतरंगों की मात्रा ३० प्रतिशत से अधिक होने पर उसके प्राणों को धोखा होने की संभावना होती है; इसलिए पुरुष में विद्यमान शिवतत्त्व को जागृत कर जीव की सुषुम्नानाडी अंशतः जागृत किया जाता है ।
प्रत्यक्ष शक्तिबीज द्वारा अर्थात बहन द्वारा प्रवाहित होनेवाली यमतरंगों को तथा उन्हें प्रत्यक्ष कार्य करने हेतु सहायता करने के लिए सूर्यनाडी को राखी का बंधन बांधकर शांत किया जाता है ।’
आजकल राखी के माध्यम से देवताओं का अनादर हो रहा है, जैसे- राखी पर ॐ या देवताओं के छायाचित्र होते हैं । उपयोग के पश्चात वे जहां-तहां पडे मिलते हैं । इसप्रकार हम देवता एवं धर्म के प्रतीकों का अपमान करते हैं, जिससे पाप लगता है ।
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