धूप सिपाही बन गई , सूरज थानेदार |
गरम हवाएं बन गईं , जुल्मी साहूकार ||
शीतलता शरमा रही , कर घूँघट की ओट |
मुरझाई सी छांव है , पड़ रही लू की चोट ||
चढ़ी दुपहरी हो गया , कर्फ़्यू जैसा हाल |
घर भीतर सब बंद हैं , सूनी है चौपाल ||
लगता है जैसे हुए , सूरज जी नाराज़ |
आग बबूला हो रहे , गिरा रहे हैं गाज ||
तापमान यूँ बढ़ रहा , ज्यों जंगल की आग |
सूर्यदेव गाने लगे , फिर से दीपक राग ||
कूलर हीटर सा लगे , पंखा उगले आग |
कोयलिया कू-कू करे , उत अमवा के बाग़ ||
लिए बीजना हाथ में , दादी करे बयार |
कूलर और पंखा हुए , बिन बिजली बेकार ||
कूए ग़ायब हो गये , सूखे पोखर - ताल |
पशु - पक्षी और आदमी , सभी हुए बेहाल ||
धरती व्याकुल हो रही , बढ़ती जाती प्यास |
दूर अभी आषाढ़ है , रहने लगी उदास ||
सूरज भी औकात में , आयेगा उस रोज |
बरखा रानी आयगी , धरती पर जिस रोज || ✍हरीओम सोनी एट
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