यदि आप अधिकांश समय मोबाइल के उपयोग में खर्च कर रहे हैं तो सावधान हो जाइए। क्यों कि इससे आप 'नोमोफोबियाÓ के शिकार हो सकते है। यह ऐसी बीमारी है, जो अफीम और स्मैक के नशे से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है।
बदलते परिवेश में फैशन के कारण अब मोबाइल जरूरत के साथ ही स्टेटस सिंबल होता जा रहा है। कई लोग दिखावे के तौर पर भी मोबाइल का उपयोग कर रहे हैं। जिस तरह अफीम और स्मैक के आदी नशेड़ी इनके बिना नहीं रह पाते। ठीक उसी तरह युवा वर्ग और बच्चे मोबाइल पर निर्भर होते जा रहे हैं।
नो मोबाइल फोन फोबिया
'नोमोफोबियाÓ को नो मोबाइल फोन फोबिया के नाम से भी जाना जाने लगा है। जो लोग इसका शिकार हो रहे हैं, वे बार-बार यह सोचकर अपना मोबाइल देखते हैं कि कहीं मोबाइल खराब तो नहीं हो गया है। नेटवर्क आ रहा है या नहीं। मोबाइल खो तो नहीं गया।
इस प्रक्रिया को बार-बाद दोहराने वाले धीरे-धीरे 'नोमोफोबियाÓ की चपेट में आ जाते हैं। इंग्लैण्ड और जर्मनी में तो इस बारे में शोध भी हो चुके हैं। वहां शोध में यही पाया गया कि जो लोग मोबाइल का आवश्यकता से अधिक उपयोग करते हैं, वे इस फोबिया का शिकार हो रहे हैं।
हो सकता है घातक
यदि मोबाइल के अत्यधिक उपयोग से गंभीर उत्तेजना या अवसाद हो जाए तो यह उस व्यक्ति, परिवार और समाज के लिए घातक हो सकता है। कई बार मिटिंग, एयरपोर्ट पर मोबाइल बंद रखने होते है, ऐसे में इस फोबिया के शिकार लोग उत्तेजित होकर अवसादग्रस्त हो जाते हैं।
यह है लक्षण
सांवलियाजी चिकित्सालय के प्रमुख चिकित्साधिकारी डॉ. मधुप बक्षी ने बताया कि 'नोमोफोबियाÓ के शिकार हुए लोगों को उत्तेजना, एंजाइटी, सांस लेने में तकलीफ, हाथ-पैरों में कंपन, पसीना आने, घबराहट, व्यवहार में बदलाव, धड़कन बढऩे, भावनात्मक लक्षण, डर लगने जैसी शिकायत हो सकती है।
कई बार तो इस फोबिया से ग्रस्त व्यक्ति को यह भी भान नहीं रहता कि वह कहां और किस हालत में है। इसके अलावा ऐसे रोगियों में आत्मविश्वास में कमी आ जाती है, किसी भी काम में मन नहीं लगता, ऐसी अवस्था में रोगी को कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
नोमोफोबियाÓ से ग्रस्त व्यक्ति अक्सर अकेला रहना ही पसंद करता है। उसे किसी से बात करना तक रास नहीं आता। इंटरनेट के अधिक उपयोग से भी व्यक्ति 'नोमोफोबियाÓ का शिकार हो सकता है।
यह है 'नोमोफोबियाÓ
जो लोग मोबाइल का अत्यधिक उपयोग करते हैं, वे मोबाइल खो जाने, नेटवर्क नहीं आने, बैटरी खत्म हो जाने और मोबाइल खराब हो जाने पर उत्तेजित हो जाते हैं। इस उत्तेजना को ही 'नोमोफोबियाÓ का शुरुआती लक्षण है, जो आगे जाकर अवसाद जैसी समस्या पैदा करता है। यह बच्चों और युवाओं में ज्यादा देखने को मिल रहा है। यही बीमारी का कारण भी बन जाता है।
यह है उपचार
प्रमुख चिकित्साधिकारी डॉ. बक्षी ने बताया कि 'नोमोफोबियाÓ से ग्रस्त व्यक्ति को मनोचिकित्सा, एंटीसाइकोटिक, एंटी डिप्रेशन, एंटी एंजाइटी ड्रग्स दी जाती है। इनमें 'क्लोन्जपामÓ और 'ट्रेनिल साइप्रोमिनÓ साल्ट शामिल है, लेकिन इन तमाम दवाइयों का चयन रोगी की हालत को देखने के बाद ही किया जाता है।
उन्होंने बताया कि ऐसे रोगियों की जांच चिकित्सक से करवानी चाहिए और चिकित्सक की सलाह के आधार पर ही दवा दी जानी चाहिए। अपने स्तर पर दवा लेने से परिणाम गंभीर हो सकते
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